मैंने अगर आपसे तब पूछा होता की,
आपकी ख़ामोशी का लिबास पहने
किस ज़माने का ग़म छुपा बैठा है?
आप के आँखों कि नमी से,
किस अर्से का तक़ल्लुफ़ बयान होता है?
आप के होंठों के थड़थड़ाहट में ,
किस पेहलू में छुपाए धड़कनों का साज़ है
तो शायद अपने
खामोश ज़ुबान से,
नम आँखों,
और थड़थडाते होंठों से
आपने कोई तो जवाब दे दिया होता …
मेरे ना पूछने में
इतनी भी कैसी चुभन थी
कि आपने दुनिया से ही
रिश्ता तोड़ दिया?
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